Jivan Parichay In Hindi

Jivan Parichay In Hindi

 

Jivan Parichay In Hindi || जीवन परिच

Jivan Parichay In Hindi | जीवन परिच

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जीवन परिचय (Biography in Hindi) jivan parichay


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                              1.प्रेमचंद



जीवन परिचय :- मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही नामक गाँव मे हुआ। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी एवं पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही मे डाक मुंशी थे। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता का तथा सोलह वर्ष की अवस्था उनके पिता का निधन हो गया जिस कारण उनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव था । प्रेमचंद की प्रारम्भिक शिक्षा फारसी मे हुई। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय मे शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। बी. ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए । उनका पहला विवाह उस समय की परम्परा के अनुसार 15 वर्ष की उम्र मे हुआ जो सफल नहीं रहा। 1906 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया। उनकी तीन संताने - श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव हुई। 1921 मे असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया । इसके बाद उन्होंने मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं मे संपादक के रूप में कार्य किया। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की "अजंता सिनेटोन कपंनी" मे कथा लेखक की नौकरी भी की। 1934 मे आई फिल्म मजदूर की कहानी प्रेमचंद ही लिखी गयी है। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्यिक सृजन मे लगे रहे। निरंतर बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया ।


साहित्यिक परिचय :-


उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरम्भ 1901 से हो चुका था । आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू भाषा मे लिखा करते थे। उनकी पहली रचना अप्रकाशित ही रही । जिसका जिक उन्होंने "पहली रचना" नाम के अपने लेख मे किया है। उनका पहला उपलब्ध उर्दू उपन्यास "असरारे मआबिद " है । जिसका हिन्दी रूपांतरण "देवस्थान रहस्य" नाम से हुआ। 1907 मे उनका पहला कहानी संग्रह "सोजे वतन" प्रकाशित हुआ । देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस संग्रह को अंग्रेज सरकार प्रतिबंधित कर इसकी सभी प्रतियॉ जब्त कर ली और इसके लेखक नवाबराय को भविष्य मे लेखन न करने की चेतावनी दी। जिसके कारण उन्हें बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने का सुझाव देने वाले दयानारायण निगम थे। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी "बड़े घर की बेटी" ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1915 मे उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती में पहली बार उनकी कहानी "सौत" नाम से प्रकाशित हुई । 1919 में उनका पहला हिन्दी उपन्यास "सेवासदन" प्रकाशित हुआ । उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखें। असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सजून मे लग गए। रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए उन्हें "मंगलाप्रसाद पारितोषक" से सम्मानित किया गया। प्रेमचंद की रचनाओं में उस दौर के समाजसुधारक आंदोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमे दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छुआछूत, जातिभेद, आधुनिकता, विधवा विवाह आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। हिन्दी कहानी तथा

उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को "प्रेमचंद युग" कहा जाता है।


रचनाएँ :-


प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है:


1. उपन्यासः - असरारे मआबिद, हिंदी रूपांतरण- देवस्थान हमखुर्मा व हमसवाब हिंदी रूपांतरण- प्रेमा रूठी रानी, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, प्रतिज्ञा, गोदान, वरदान तथा मंगलसूत्र ।


2. कहानी:- प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियाँ लिखी। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है- दो बैलो की कथा, पूस की रात, ईदगाह, दो सखियाँ, नमक का दरोगा, बड़े बाबू, सौत, सुजान भगत, बड़े घर की बेटी, कफन, पंचपरमेश्वर, नशा, परीक्षा, शतरंज का खिलाड़ी, बलिदान, माता का हदय, मिस पदमा, कजाकी आदि ।

3. कहानी संग्रहः- सोजे वतन, सप्तसरोज, नवनिधि, समरयात्रा, मानसरोवर - 8 भागों मे प्रकाशित


4. नाटक :- संग्राम, प्रेम की वेदी और कर्बला ।


5. निबंध :- पुराना जमाना नया जमाना, स्वराज के फायदे, कहानी कला, हिन्दी-उर्दू की एकता, उपन्यास, जीवन मे साहित्य का स्थान, महाजनी सभ्यता आदि ।


6. अनुवाद:- प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे ।


"टॉलस्टॉय की कहानियाँ", "चॉदी की डिबियाँ", "न्याय" और " गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल" नाम से अनुवाद किया ।


7. पत्र-पत्रिकाओं का संपादन:- प्रेमचंद ने माधुरी, हंस, जागरण मर्यादा का संपादन किया ।


भाषा-शैली :-


मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज, स्वाभाविक, व्यवहारिक एवं प्रभावशाली है। उर्दू से हिन्दी मे आने के कारण उनकी भाषा मे तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है। उनकी रचनाओं में लोकोक्तियों, मुहावरों एवं सुक्तियों के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है ।


साहित्य में स्थान :-


साहित्य के क्षेत्र मे प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया । उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को एक नया मोड़ दिया। आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उनकी रचनाओं मे वे नायक हुए जिन्हें भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था । उन्होंने अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया । उपन्यास के क्षेत्र मे उनके योगदान के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें "उपन्यास सम्राट" कहकर सम्बोधित किया था। रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए उन्हें "मंगलाप्रसाद पारितोषक" से सम्मानित किया गया तथा उनके पुत्र अमृतराय ने उन्हें "कलम का सिपाही" नाम दिया ।


2. हरिशंकर परसाई



जीवन परिचय:- हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। वे हिंदी साहित्य के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया। सुप्रतिष्ठित व्यंगकार हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के जमानी नामक गाँव में 22 अगस्त सन, 1924 को हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई इसके पश्चात् नागपुर विश्वविद्यालय से परसाई जी ने हिंदी में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की, तथा कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। 1953 से 1957 तक आपने प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की | साहित्य में विशेष रुचि होने के कारण परसाई जी ने 1957 में आपने नौकरी त्यागकर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की, और साहित्य सेवा में जुट गए। 18 वर्ष की उम्र में आपने वन विभाग में नौकरी प्राप्त की उसके बाद खंडवा में आपने 6 महीने तक अध्यापन का कार्य किया। इन्होंने जबलपुर से 'वसुधा' नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया लेकिन बाद में आर्थिक क्षति होने के कारण ही पत्रिका के प्रकाशन को बंद कर दिया।

परसाई जी मूल रूप से एक व्यंगकार है। परसाई जी ने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्याप्त शोषण तथा भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग किया है जोकि हिन्दी व्यंग- साहित्य में अनठा है। हरिशंकर परसाई जी मध्यप्रदेश के जबलपुर व रायपुर से प्रकाशित अखबार ‘देशबंधु' में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। परसाई जी के कालम का नाम था - पारसाई से पूछें। शुरुआती दिनों में इस कॉलम में हल्के, इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे। परन्तु परसाई जी ने धीरे-धीरे लोगों को गम्भीर सामाजिक एवं राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। इस कॉलम का दायरा बढ़ा और यह अंतर्राष्ट्रीय हो गया। आगे चलकर लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार करते थे। 10 अस्त सन 1995 को हिंदी का यह यशस्वी साहित्यकार जबलपुर, मध्य प्रदेश में परलोकवासी हो गया | परसाई जी ने हिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और इस साहित्य को उन्होंने एक अलग रूप प्रदान किया। परसाई जी के उल्लेखनीय कार्यों के लिए हिन्दी साहित्य सदैव उनका ऋणी I रहेगा। 


साहित्यिक योगदान-


परसाई जी हिंदी व्यंग के आधार स्तंभ थे| इन्होंने हिंदी व्यंग को नई दिशा प्रदान की और अपनी रचनाओं में व्यक्ति और समाज I की विसंगतियों पर से पर्दा हटाया है। विकलांग श्रद्धा का दौर' ग्रंथ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान तथा मध्य प्रदेश कला परिषद द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। इन्होंने कथाकार उपन्यासकार निबंधकार तथा संपादक के रूप में हिंदी साहित्य के महान सेवा की। 


परसाई जी की रचनाएँ-


I परसाई जी अपनी कहानियों उपन्यासों तथा निबंध में व्यक्ति और समाज कि कमजोरियों विसंगतियों और आडंबरपूर्ण जीवन पर गहरी चोट करते हैं। 


(1) कहानी संग्रह - हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव, दो नाकवाले लोग ।


(2) उपन्यास- तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल ।

(3) संस्मरण- तिरछी रेखाएँ ।


(4) निबंध संग्रह - तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है आदि इनकी प्रमुख कृतियां हैं।


परसाई जी का साहित्य में स्थान-


I हरिशंकर परसाई जी प्रसिद्ध हिंदी साहित्य के एक समर्थ व्यंगकार थे इन्होंने हिंदी निबंध साहित्य में हास्य-व्यंग प्रधान निबंधों की रचना करके एक विशेष अभाव की पूर्ति की । इनकी शैली का प्राण व्यंग और विनोद है| अपनी विशिष्ट शैली से परसाई जी ने हिंदी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया |

 

                           3. महादेवी वर्मा



जीवन परिचय :- महादेवी वर्मा भारत की प्रसिद्ध कवित्री तथा लेखिका थीं। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले के नेरा मौसमबाघ गांव में हुआ था। उनके पिता महावीर प्रसाद वर्मा एक स्कूल अध्यापक थे। महादेवी वर्मा ने अपनी बचपन की शिक्षा भी पिता से ही प्राप्त की थी।


महादेवी वर्मा ने अपनी साहित्यिक शुरुआत बचपन से ही की थी। वे बचपन से ही कविताओं और कहानियों का शौक रखती थीं और बचपन में ही उन्होंने कई कविताओं को लिखा था।


महादेवी वर्मा ने अपनी शादी उम्र के 15 वर्ष में की थी। उन्हें दो बच्चे हुए थे जिनके लिए वे अपने लेखों का संचालन करती थीं। उनका पति डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा भी साहित्य के प्रेमी थे और उन्होंने अपनी पत्नी के लेखों की प्रोत्साहना की थी।


महादेवी वर्मा की रचनाओं में नारी उत्थान को लेकर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। वे नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपनी कविताओं में दर्शाती थीं।


महादेवी वर्मा की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण रचना ‘यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं’ है। इस रचना में उन्होंने बाल-कविताएं लिखीं हैं जो बच्चों के लिए उनकी मूल शिक्षा का एक भाग होती हैं।


महादेवी वर्मा को भारत सरकार द्वारा उनके योगदान के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी पुस्तक ‘यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं’ भारत सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विद्यालयों में परिचय की जाती है।


महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ था। उनके जाने के बाद उनकी रचनाओं का महत्त्व और चर्चा और भी बढ़ गया है।


रचनाएं:- महादेवी वर्मा की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:


1. यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं - इस पुस्तक का उल्लेख हमने पहले ही किया है। इस पुस्तक में उन्होंने बाल-कविताएं लिखी हैं जो बच्चों के लिए उनकी मूल शिक्षा का एक भाग होती हैं।


2. मधुशाला - इस रचना में महादेवी वर्मा ने शराब के संदर्भ में यथार्थ एवं व्यंग्यात्मक उपयोग किया है।


3. अग्नि-वीथी - इस रचना में महादेवी वर्मा ने नारी के अस्तित्व पर संजीदगी से बात की है।


4. नई दुनिया - इस रचना में महादेवी वर्मा ने आधुनिक जीवनशैली के संदर्भ में लेख लिखे हैं।


5. स्त्रीपुरुष - इस रचना में महादेवी वर्मा ने स्त्रीपुरुष के बीच जाति एवं समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचार किए हैं।


6. सम्मान और स्वाभिमान - इस रचना में महादेवी वर्मा ने समाज के असंगठित वर्गों के जीवन पर विचार किए हैं।


7. दीवारों के बीच - इस रचना में महादेवी वर्मा ने बाल मजदूरों के बीच संघर्ष तथा उनकी समस्याओं पर विचार किए हैं।


8. सन्देह - इस रचना में महादेवी वर्मा ने आधुनिक जीवनशैली के संदर्भ में विचार किया है।


इन सभी रचनाओं के अलावा भी महादेवी वर्मा ने कई अन्य कविताएं, कहानियां और नाटक लिखे हैं।


भाषा शैली -


महादेवी वर्मा की भाषा शैली सुंदर, सरल, व्यंग्यात्मक और सुगम होती है। उनकी रचनाओं में साधारण भाषा का प्रयोग किया जाता है ताकि वे बहुत से लोगों तक पहुँच सकें। उनकी रचनाओं में सरलता के साथ सुगमता भी होती है जो पाठकों के दिलों में उनकी रचनाओं को यादगार बनाती है।


महादेवी वर्मा की रचनाओं में व्यंग्यात्मकता भी होती है जो उनकी रचनाओं को बहुत ही रोचक बनाती है। उन्होंने अपनी कुछ रचनाओं में संगीत के भी उपयोग किया है जो उनकी रचनाओं की सुगमता को और बढ़ाता है।


साहित्य मे स्थान:- 


महादेवी वर्मा भारतीय साहित्य की प्रमुख महिला लेखिकाओं में से एक हैं। उनकी रचनाओं में उन्होंने समाज के समस्याओं, नारी के उत्थान, संस्कृति, राजनीति, जीवन के मूल्य और अन्य विषयों पर उत्कृष्ट विचार व्यक्त किए हैं।


महादेवी वर्मा की रचनाएं बहुत सम्मानित हुई हैं। उन्होंने स्वतंत्र भारत के समय से नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन के समय से ही अपनी रचनाओं के ज़रिए समाज को जागरूक करने का काम किया। उनके लेखन शैली में सरलता और सुंदरता का खासा उल्लेख होता है।


उन्होंने कई राष्ट्रीय अवार्ड जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे अवार्डों से सम्मानित किया गया है। आज भी उनकी रचनाएं देश और विदेश में बहुत लोकप्रिय हैं और उन्हें एक विस्मृत नहीं किया जा सकता।


4. हजारी प्रसाद द्विवेदी



हजारी प्रसाद द्विवेदी (1907-1979) भारतीय साहित्यकार, विचारक, नाटककार, कवि तथा लेखक थे। उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी साहित्यिक संवेदना को व्यक्त किया था।


जीवनी परिचय:- हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1 सितंबर 1907 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता उर्फ़ मोतीलाल द्विवेदी संस्कृत विद्वान थे और उनकी माता नरेंद्रशिला नाम की थी। उनके घर में संस्कृत वेदों, पुराणों और दर्शनशास्त्रों की धूम हमेशा रहती थी तथा इस वैदिक संस्कृति का प्रभाव उनकी साहित्य पहचान पर अधिक था। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नास्तिक वाद की खट्म किया और संसार की कल्पना में संदीग्धता उत्पन्न की थी।


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी उपलब्धियों की शुरुआत अपनी जौहर नामक पत्रिका से की। उन्होंने कुछ लेख इस पत्रिका में प्रकाशित कराए थे। उन्होंने नाटक का भी अभ्यास किया था और तीन नाटक भी लिखे थे जिनमें से 'आँधी और तूफ़ान' सबसे महत्वपूर्ण था।


हजारी प्रसाद द्विवेदी की कविताएं साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय थीं। अनेक लोक-गीत, संगीत के लिए अनुकृतियां उनकी कराई गई थी। उनकी प्रसिद्ध कविताएं जैसे 'राम की शक्ति पूजा', 'चन्दा मामा दूर के', 'इंसान और बिल्ली' तथा 'बारह खंड की खत्म शक्ति' का पूरा साहित्य हमें महसूस कराते हैं। उनकी पुस्तक 'बनभूलबच्चन' भी काफी लोकप्रिय हुई।


हजारी प्रसाद द्विवेदी की अस्थायीता 19 अगस्त 1979 को उनकी देहांत होने से हुई थी। उनहोंने अपने जीवन में साहित्य के फील्ड में कुछ ऐसे कृतित्व प्राप्त किए थे जो उन्हें सभी भारतीय साहित्यकारों में एक अलग पहचान देते हैं।


रचनाएं -


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवन के दौरान विभिन्न विषयों पर कविताएं, कहानियां, नाटक, निबंध लिखे थे। कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं:


- आँधी और तूफ़ान

- मृत्यु का टैक्सीवाला

- बनभूलबच्चन

- राम की शक्ति पूजा

- चन्दा मामा दूर के

- अनुजा

- अरण्यक

- महाभारत की अंतिम दु:ख निवृत्ति

- इंसान और बिल्ली

- बारह खंड की खत्म शक्ति

- निर्बाण के बाद


इसके अलावा उन्होंने कई अन्य रचनाएं भी लिखीं थीं जो उनकी साहित्यिक विरासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


भाषा शैली-


हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली साहित्य में अद्भुत रही है। उन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया जो सामान्य जनता तक पहुँचने में सक्षम थी। उनकी भाषा संघर्षपूर्ण थी, जिसमें दुख, खुशी तथा विजय के अभिव्यक्ति का सुन्दर संयोग होता था। इसके अलावा, उनकी रचनाओं में थाट तथा दोहे के रूप में उपयोग किए जाने वाले उदाहरण भी उपलब्ध हैं जो उनकी साहित्य को अनिवार्य रूप से सुंदर बनाते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य भारतीय संस्कृति की गहराई तथा उसकी परंपराओं को संरक्षित रखता है।


साहित्य में स्थान :- 


हजारी प्रसाद द्विवेदी भारतीय साहित्य के सर्वोत्तम कवि तथा लेखकों में से एक हैं। उनकी रचनाओं का संग्रह भारतीय साहित्य के श्रेष्ठ कृतियों में से एक माना जाता है। उनकी लेखनी अमूल्य है जो भारतीय संस्कृति को समृद्ध करती है। 


उनके कई लेखनी आधार पर फिल्मों की तैयारी की जाती है। वे विभिन्न विषयों पर लिखा हैं जैसे - राष्ट्र के लिए कर्तव्य, समाज और सामाजिक विज्ञान आदि। 


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उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की बेजोड़ श्रृंखला बनाती हैं जो भारत की संस्कृति और सामाजिक जीवन को बताती हैं।  हमारे लिए उनके लेखन को समझने तथा इससे प्रेरणा लेने का योगदान अमूल्य है।







|| जीवन परिच

Jivan Parichay In Hindi | जीवन परिच

जीवन परिचय (Biography in Hindi) jivan parichay


जीवन परिचय: आज की इस पोस्ट में हम आपको जीवन परिचय बताने वाले है। जीवन परिचय जो सभी class में पूछे जाने वाले question है। सभी जीवन परिचय आज की पोस्ट में बताने वाले है। जीवन परिचय in hindi के सभी महत्वपूर्ण जीवन परिचय बताने वाले है। चाहे आप किसी भी बोर्ड के छात्र हो आप सभी के लिए जीवन परिचय most imp जीवन परिचय बताने वाले है।


जीवन परिचय | Jivan Parichay In Hindi जीवन परिचय class 5th 6th, 7th 8th ,9th,10th,11th,12th Class में हो तो आप सभी जीवन परिचय बताने वाले हैं। Tulsidas ka jivan parichay,kabir das ka jivan parichay,rahim das ka jivan parichay, सूरदास का जीवन परिचय, प्रेमचंद का जीवन परिचय, हरिशंकर परसाई का जीवन परिचय, महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, . हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय


                              1.प्रेमचंद



जीवन परिचय :- मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही नामक गाँव मे हुआ। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी एवं पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही मे डाक मुंशी थे। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता का तथा सोलह वर्ष की अवस्था उनके पिता का निधन हो गया जिस कारण उनका प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय रहा। उनका मूल नाम धनपतराय श्रीवास्तव था । प्रेमचंद की प्रारम्भिक शिक्षा फारसी मे हुई। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय मे शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। बी. ए. पास करने के बाद वे शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए । उनका पहला विवाह उस समय की परम्परा के अनुसार 15 वर्ष की उम्र मे हुआ जो सफल नहीं रहा। 1906 में उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया। उनकी तीन संताने - श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव हुई। 1921 मे असहयोग आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया । इसके बाद उन्होंने मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं मे संपादक के रूप में कार्य किया। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। उन्होंने मोहन दयाराम भवनानी की "अजंता सिनेटोन कपंनी" मे कथा लेखक की नौकरी भी की। 1934 मे आई फिल्म मजदूर की कहानी प्रेमचंद ही लिखी गयी है। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्यिक सृजन मे लगे रहे। निरंतर बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया ।


साहित्यिक परिचय :-


उपन्यास सम्राट कहे जाने वाले प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरम्भ 1901 से हो चुका था । आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू भाषा मे लिखा करते थे। उनकी पहली रचना अप्रकाशित ही रही । जिसका जिक उन्होंने "पहली रचना" नाम के अपने लेख मे किया है। उनका पहला उपलब्ध उर्दू उपन्यास "असरारे मआबिद " है । जिसका हिन्दी रूपांतरण "देवस्थान रहस्य" नाम से हुआ। 1907 मे उनका पहला कहानी संग्रह "सोजे वतन" प्रकाशित हुआ । देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण इस संग्रह को अंग्रेज सरकार प्रतिबंधित कर इसकी सभी प्रतियॉ जब्त कर ली और इसके लेखक नवाबराय को भविष्य मे लेखन न करने की चेतावनी दी। जिसके कारण उन्हें बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने का सुझाव देने वाले दयानारायण निगम थे। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी "बड़े घर की बेटी" ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1915 मे उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती में पहली बार उनकी कहानी "सौत" नाम से प्रकाशित हुई । 1919 में उनका पहला हिन्दी उपन्यास "सेवासदन" प्रकाशित हुआ । उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास लिखें। असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद वे पूरी तरह साहित्य सजून मे लग गए। रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए उन्हें "मंगलाप्रसाद पारितोषक" से सम्मानित किया गया। प्रेमचंद की रचनाओं में उस दौर के समाजसुधारक आंदोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमे दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छुआछूत, जातिभेद, आधुनिकता, विधवा विवाह आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। हिन्दी कहानी तथा

उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को "प्रेमचंद युग" कहा जाता है।


रचनाएँ :-


प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है:


1. उपन्यासः - असरारे मआबिद, हिंदी रूपांतरण- देवस्थान हमखुर्मा व हमसवाब हिंदी रूपांतरण- प्रेमा रूठी रानी, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, प्रतिज्ञा, गोदान, वरदान तथा मंगलसूत्र ।


2. कहानी:- प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियाँ लिखी। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है- दो बैलो की कथा, पूस की रात, ईदगाह, दो सखियाँ, नमक का दरोगा, बड़े बाबू, सौत, सुजान भगत, बड़े घर की बेटी, कफन, पंचपरमेश्वर, नशा, परीक्षा, शतरंज का खिलाड़ी, बलिदान, माता का हदय, मिस पदमा, कजाकी आदि ।

3. कहानी संग्रहः- सोजे वतन, सप्तसरोज, नवनिधि, समरयात्रा, मानसरोवर - 8 भागों मे प्रकाशित


4. नाटक :- संग्राम, प्रेम की वेदी और कर्बला ।


5. निबंध :- पुराना जमाना नया जमाना, स्वराज के फायदे, कहानी कला, हिन्दी-उर्दू की एकता, उपन्यास, जीवन मे साहित्य का स्थान, महाजनी सभ्यता आदि ।


6. अनुवाद:- प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे ।


"टॉलस्टॉय की कहानियाँ", "चॉदी की डिबियाँ", "न्याय" और " गाल्सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल" नाम से अनुवाद किया ।


7. पत्र-पत्रिकाओं का संपादन:- प्रेमचंद ने माधुरी, हंस, जागरण मर्यादा का संपादन किया ।


भाषा-शैली :-


मुंशी प्रेमचंद की भाषा सहज, स्वाभाविक, व्यवहारिक एवं प्रभावशाली है। उर्दू से हिन्दी मे आने के कारण उनकी भाषा मे तत्सम शब्दों की बहुलता मिलती है। उनकी रचनाओं में लोकोक्तियों, मुहावरों एवं सुक्तियों के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है ।


साहित्य में स्थान :-


साहित्य के क्षेत्र मे प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया । उन्होंने हिन्दी कथा साहित्य को एक नया मोड़ दिया। आम आदमी को उन्होंने अपनी रचनाओं का विषय बनाया। उनकी रचनाओं मे वे नायक हुए जिन्हें भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था । उन्होंने अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया । उपन्यास के क्षेत्र मे उनके योगदान के लिए बंगाल के उपन्यासकार शरतचंद्र चटोपाध्याय ने उन्हें "उपन्यास सम्राट" कहकर सम्बोधित किया था। रंगभूमि नामक उपन्यास के लिए उन्हें "मंगलाप्रसाद पारितोषक" से सम्मानित किया गया तथा उनके पुत्र अमृतराय ने उन्हें "कलम का सिपाही" नाम दिया ।


2. हरिशंकर परसाई



जीवन परिचय:- हरिशंकर परसाई हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। वे हिंदी साहित्य के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया। सुप्रतिष्ठित व्यंगकार हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के जमानी नामक गाँव में 22 अगस्त सन, 1924 को हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई इसके पश्चात् नागपुर विश्वविद्यालय से परसाई जी ने हिंदी में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की, तथा कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। 1953 से 1957 तक आपने प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की | साहित्य में विशेष रुचि होने के कारण परसाई जी ने 1957 में आपने नौकरी त्यागकर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की, और साहित्य सेवा में जुट गए। 18 वर्ष की उम्र में आपने वन विभाग में नौकरी प्राप्त की उसके बाद खंडवा में आपने 6 महीने तक अध्यापन का कार्य किया। इन्होंने जबलपुर से 'वसुधा' नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया लेकिन बाद में आर्थिक क्षति होने के कारण ही पत्रिका के प्रकाशन को बंद कर दिया।

परसाई जी मूल रूप से एक व्यंगकार है। परसाई जी ने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में व्याप्त शोषण तथा भ्रष्टाचार पर करारा व्यंग किया है जोकि हिन्दी व्यंग- साहित्य में अनठा है। हरिशंकर परसाई जी मध्यप्रदेश के जबलपुर व रायपुर से प्रकाशित अखबार ‘देशबंधु' में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। परसाई जी के कालम का नाम था - पारसाई से पूछें। शुरुआती दिनों में इस कॉलम में हल्के, इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे। परन्तु परसाई जी ने धीरे-धीरे लोगों को गम्भीर सामाजिक एवं राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। इस कॉलम का दायरा बढ़ा और यह अंतर्राष्ट्रीय हो गया। आगे चलकर लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार करते थे। 10 अस्त सन 1995 को हिंदी का यह यशस्वी साहित्यकार जबलपुर, मध्य प्रदेश में परलोकवासी हो गया | परसाई जी ने हिन्दी साहित्य में व्यंग विधा को एक नई पहचान दी और इस साहित्य को उन्होंने एक अलग रूप प्रदान किया। परसाई जी के उल्लेखनीय कार्यों के लिए हिन्दी साहित्य सदैव उनका ऋणी I रहेगा। 


साहित्यिक योगदान-


परसाई जी हिंदी व्यंग के आधार स्तंभ थे| इन्होंने हिंदी व्यंग को नई दिशा प्रदान की और अपनी रचनाओं में व्यक्ति और समाज I की विसंगतियों पर से पर्दा हटाया है। विकलांग श्रद्धा का दौर' ग्रंथ पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान तथा मध्य प्रदेश कला परिषद द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया गया। इन्होंने कथाकार उपन्यासकार निबंधकार तथा संपादक के रूप में हिंदी साहित्य के महान सेवा की। 


परसाई जी की रचनाएँ-


I परसाई जी अपनी कहानियों उपन्यासों तथा निबंध में व्यक्ति और समाज कि कमजोरियों विसंगतियों और आडंबरपूर्ण जीवन पर गहरी चोट करते हैं। 


(1) कहानी संग्रह - हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव, दो नाकवाले लोग ।


(2) उपन्यास- तट की खोज, रानी नागफनी की कहानी, ज्वाला और जल ।

(3) संस्मरण- तिरछी रेखाएँ ।


(4) निबंध संग्रह - तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार का ताबीज, शिकायत मुझे भी है आदि इनकी प्रमुख कृतियां हैं।


परसाई जी का साहित्य में स्थान-


I हरिशंकर परसाई जी प्रसिद्ध हिंदी साहित्य के एक समर्थ व्यंगकार थे इन्होंने हिंदी निबंध साहित्य में हास्य-व्यंग प्रधान निबंधों की रचना करके एक विशेष अभाव की पूर्ति की । इनकी शैली का प्राण व्यंग और विनोद है| अपनी विशिष्ट शैली से परसाई जी ने हिंदी साहित्य में अपना प्रमुख स्थान बना लिया |

 

                           3. महादेवी वर्मा



जीवन परिचय :- महादेवी वर्मा भारत की प्रसिद्ध कवित्री तथा लेखिका थीं। उनका जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले के नेरा मौसमबाघ गांव में हुआ था। उनके पिता महावीर प्रसाद वर्मा एक स्कूल अध्यापक थे। महादेवी वर्मा ने अपनी बचपन की शिक्षा भी पिता से ही प्राप्त की थी।


महादेवी वर्मा ने अपनी साहित्यिक शुरुआत बचपन से ही की थी। वे बचपन से ही कविताओं और कहानियों का शौक रखती थीं और बचपन में ही उन्होंने कई कविताओं को लिखा था।


महादेवी वर्मा ने अपनी शादी उम्र के 15 वर्ष में की थी। उन्हें दो बच्चे हुए थे जिनके लिए वे अपने लेखों का संचालन करती थीं। उनका पति डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा भी साहित्य के प्रेमी थे और उन्होंने अपनी पत्नी के लेखों की प्रोत्साहना की थी।


महादेवी वर्मा की रचनाओं में नारी उत्थान को लेकर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। वे नारी जीवन के विभिन्न पहलुओं को अपनी कविताओं में दर्शाती थीं।


महादेवी वर्मा की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण रचना ‘यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं’ है। इस रचना में उन्होंने बाल-कविताएं लिखीं हैं जो बच्चों के लिए उनकी मूल शिक्षा का एक भाग होती हैं।


महादेवी वर्मा को भारत सरकार द्वारा उनके योगदान के लिए पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी पुस्तक ‘यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं’ भारत सरकार द्वारा शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विद्यालयों में परिचय की जाती है।


महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को हुआ था। उनके जाने के बाद उनकी रचनाओं का महत्त्व और चर्चा और भी बढ़ गया है।


रचनाएं:- महादेवी वर्मा की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:


1. यह अक्षर-अक्षर कैसे बनते हैं - इस पुस्तक का उल्लेख हमने पहले ही किया है। इस पुस्तक में उन्होंने बाल-कविताएं लिखी हैं जो बच्चों के लिए उनकी मूल शिक्षा का एक भाग होती हैं।


2. मधुशाला - इस रचना में महादेवी वर्मा ने शराब के संदर्भ में यथार्थ एवं व्यंग्यात्मक उपयोग किया है।


3. अग्नि-वीथी - इस रचना में महादेवी वर्मा ने नारी के अस्तित्व पर संजीदगी से बात की है।


4. नई दुनिया - इस रचना में महादेवी वर्मा ने आधुनिक जीवनशैली के संदर्भ में लेख लिखे हैं।


5. स्त्रीपुरुष - इस रचना में महादेवी वर्मा ने स्त्रीपुरुष के बीच जाति एवं समाज के विभिन्न मुद्दों पर विचार किए हैं।


6. सम्मान और स्वाभिमान - इस रचना में महादेवी वर्मा ने समाज के असंगठित वर्गों के जीवन पर विचार किए हैं।


7. दीवारों के बीच - इस रचना में महादेवी वर्मा ने बाल मजदूरों के बीच संघर्ष तथा उनकी समस्याओं पर विचार किए हैं।


8. सन्देह - इस रचना में महादेवी वर्मा ने आधुनिक जीवनशैली के संदर्भ में विचार किया है।


इन सभी रचनाओं के अलावा भी महादेवी वर्मा ने कई अन्य कविताएं, कहानियां और नाटक लिखे हैं।


भाषा शैली -


महादेवी वर्मा की भाषा शैली सुंदर, सरल, व्यंग्यात्मक और सुगम होती है। उनकी रचनाओं में साधारण भाषा का प्रयोग किया जाता है ताकि वे बहुत से लोगों तक पहुँच सकें। उनकी रचनाओं में सरलता के साथ सुगमता भी होती है जो पाठकों के दिलों में उनकी रचनाओं को यादगार बनाती है।


महादेवी वर्मा की रचनाओं में व्यंग्यात्मकता भी होती है जो उनकी रचनाओं को बहुत ही रोचक बनाती है। उन्होंने अपनी कुछ रचनाओं में संगीत के भी उपयोग किया है जो उनकी रचनाओं की सुगमता को और बढ़ाता है।


साहित्य मे स्थान:- 


महादेवी वर्मा भारतीय साहित्य की प्रमुख महिला लेखिकाओं में से एक हैं। उनकी रचनाओं में उन्होंने समाज के समस्याओं, नारी के उत्थान, संस्कृति, राजनीति, जीवन के मूल्य और अन्य विषयों पर उत्कृष्ट विचार व्यक्त किए हैं।


महादेवी वर्मा की रचनाएं बहुत सम्मानित हुई हैं। उन्होंने स्वतंत्र भारत के समय से नहीं बल्कि ब्रिटिश शासन के समय से ही अपनी रचनाओं के ज़रिए समाज को जागरूक करने का काम किया। उनके लेखन शैली में सरलता और सुंदरता का खासा उल्लेख होता है।


उन्होंने कई राष्ट्रीय अवार्ड जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे अवार्डों से सम्मानित किया गया है। आज भी उनकी रचनाएं देश और विदेश में बहुत लोकप्रिय हैं और उन्हें एक विस्मृत नहीं किया जा सकता।


4. हजारी प्रसाद द्विवेदी



हजारी प्रसाद द्विवेदी (1907-1979) भारतीय साहित्यकार, विचारक, नाटककार, कवि तथा लेखक थे। उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी साहित्यिक संवेदना को व्यक्त किया था।


जीवनी परिचय:- हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1 सितंबर 1907 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता उर्फ़ मोतीलाल द्विवेदी संस्कृत विद्वान थे और उनकी माता नरेंद्रशिला नाम की थी। उनके घर में संस्कृत वेदों, पुराणों और दर्शनशास्त्रों की धूम हमेशा रहती थी तथा इस वैदिक संस्कृति का प्रभाव उनकी साहित्य पहचान पर अधिक था। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नास्तिक वाद की खट्म किया और संसार की कल्पना में संदीग्धता उत्पन्न की थी।


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी उपलब्धियों की शुरुआत अपनी जौहर नामक पत्रिका से की। उन्होंने कुछ लेख इस पत्रिका में प्रकाशित कराए थे। उन्होंने नाटक का भी अभ्यास किया था और तीन नाटक भी लिखे थे जिनमें से 'आँधी और तूफ़ान' सबसे महत्वपूर्ण था।


हजारी प्रसाद द्विवेदी की कविताएं साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय थीं। अनेक लोक-गीत, संगीत के लिए अनुकृतियां उनकी कराई गई थी। उनकी प्रसिद्ध कविताएं जैसे 'राम की शक्ति पूजा', 'चन्दा मामा दूर के', 'इंसान और बिल्ली' तथा 'बारह खंड की खत्म शक्ति' का पूरा साहित्य हमें महसूस कराते हैं। उनकी पुस्तक 'बनभूलबच्चन' भी काफी लोकप्रिय हुई।


हजारी प्रसाद द्विवेदी की अस्थायीता 19 अगस्त 1979 को उनकी देहांत होने से हुई थी। उनहोंने अपने जीवन में साहित्य के फील्ड में कुछ ऐसे कृतित्व प्राप्त किए थे जो उन्हें सभी भारतीय साहित्यकारों में एक अलग पहचान देते हैं।


रचनाएं -


हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपने जीवन के दौरान विभिन्न विषयों पर कविताएं, कहानियां, नाटक, निबंध लिखे थे। कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के नाम निम्नलिखित हैं:


- आँधी और तूफ़ान

- मृत्यु का टैक्सीवाला

- बनभूलबच्चन

- राम की शक्ति पूजा

- चन्दा मामा दूर के

- अनुजा

- अरण्यक

- महाभारत की अंतिम दु:ख निवृत्ति

- इंसान और बिल्ली

- बारह खंड की खत्म शक्ति

- निर्बाण के बाद


इसके अलावा उन्होंने कई अन्य रचनाएं भी लिखीं थीं जो उनकी साहित्यिक विरासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


भाषा शैली-


हजारी प्रसाद द्विवेदी की भाषा शैली साहित्य में अद्भुत रही है। उन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया जो सामान्य जनता तक पहुँचने में सक्षम थी। उनकी भाषा संघर्षपूर्ण थी, जिसमें दुख, खुशी तथा विजय के अभिव्यक्ति का सुन्दर संयोग होता था। इसके अलावा, उनकी रचनाओं में थाट तथा दोहे के रूप में उपयोग किए जाने वाले उदाहरण भी उपलब्ध हैं जो उनकी साहित्य को अनिवार्य रूप से सुंदर बनाते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्य भारतीय संस्कृति की गहराई तथा उसकी परंपराओं को संरक्षित रखता है।


साहित्य में स्थान :- 


हजारी प्रसाद द्विवेदी भारतीय साहित्य के सर्वोत्तम कवि तथा लेखकों में से एक हैं। उनकी रचनाओं का संग्रह भारतीय साहित्य के श्रेष्ठ कृतियों में से एक माना जाता है। उनकी लेखनी अमूल्य है जो भारतीय संस्कृति को समृद्ध करती है। 


उनके कई लेखनी आधार पर फिल्मों की तैयारी की जाती है। वे विभिन्न विषयों पर लिखा हैं जैसे - राष्ट्र के लिए कर्तव्य, समाज और सामाजिक विज्ञान आदि। 


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उनकी रचनाएं हिंदी साहित्य की बेजोड़ श्रृंखला बनाती हैं जो भारत की संस्कृति और सामाजिक जीवन को बताती हैं।  हमारे लिए उनके लेखन को समझने तथा इससे प्रेरणा लेने का योगदान अमूल्य है।



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